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रामभद्राचार्य ने दी प्रेमानंद महाराज को चुनौती, भड़के हिंदू नेता

संतों में टकराव – रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज के बीच विवाद, ज्ञान का अहंकार बनाम भक्ति की सादगी ज्ञान का अहंकार या भक्ति की सादगी? रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज के बीच बढ़ता विवाद, जानिए पूरा सच

विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

उत्तर प्रदेश में आध्यात्मिक जगत इन दिनों एक नए विवाद की वजह से सुर्खियों में है। चित्रकूट के संत जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने एक इंटरव्यू में वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज को चमत्कारी मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि प्रेमानंद महाराज उनके लिए केवल “बालक समान” हैं।

रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि वे महाराज को न तो विद्वान मानते हैं और न ही चमत्कारी पुरुष। उन्होंने सीधे तौर पर चुनौती दी कि –
अगर प्रेमानंद महाराज वास्तव में चमत्कारी हैं, तो वे उनके सामने संस्कृत का कोई एक शब्द बोलकर दिखाएं या फिर किसी श्लोक का अर्थ समझाएं

रामभद्राचार्य ने क्यों दिया यह बयान?

इंटरव्यू में रामभद्राचार्य ने साफ कहा कि उनके मन में प्रेमानंद महाराज के लिए कोई द्वेष नहीं है। लेकिन उन्होंने उनकी लोकप्रियता को क्षणभंगुर बताते हुए कहा कि चमत्कारों से ज्यादा अहम ज्ञान और विद्वता होती है।

हिंदू नेता दिनेश फलाहारी की कड़ी प्रतिक्रिया

इस बयान के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले के याचिकाकर्ता और हिंदू नेता दिनेश फलाहारी ने जमकर आपत्ति जताई। फलाहारी का कहना है कि:

  • रामभद्राचार्य को अपने ज्ञान का अहंकार हो गया है।
  • प्रेमानंद महाराज करोड़ों लोगों के जीवन को बदल रहे हैं।
  • वे लोगों को सनातन धर्म से जोड़ रहे हैं और उनकी सादगी ही उनकी सबसे बड़ी पहचान है।

फलाहारी ने कहा कि रामभद्राचार्य का बयान संत समाज में अनावश्यक विवाद खड़ा करता है और भक्तों की भावनाओं को आहत करता है।

प्रेमानंद महाराज की छवि

प्रेमानंद महाराज को उनके अनुयायी एक भक्ति-रसिक संत मानते हैं।

  • उनका जीवन सादगी और कृष्ण भक्ति से भरा हुआ है।
  • उनके भजन और कथाएँ लाखों-करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रहे हैं।
  • सोशल मीडिया और यूट्यूब पर उनकी कथाओं को खूब देखा और सुना जाता है।

विवाद का असर

यह विवाद सिर्फ दो संतों के बीच मतभेद नहीं, बल्कि पूरे संत समाज में चर्चा का विषय बन गया है।

  • एक ओर रामभद्राचार्य जैसे विद्वान संत ज्ञान को सर्वोपरि मानते हैं।
  • दूसरी ओर प्रेमानंद महाराज जैसे संत, भक्ति और सादगी से जनमानस को जोड़ रहे हैं
  • इस बहस के बीच भक्त समाज बंटा हुआ नज़र आ रहा है।

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