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CP Radhakrishnan भारत के 15वें उपराष्ट्रपति: राज्य से केंद्र तक की राजनीति की नई राह

भारत के 15वें उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन शपथ ग्रहण करते हुए, राष्ट्रपति भवन में ऐतिहासिक क्षण CP राधाकृष्णन बने भारत के 15वें उपराष्ट्रपति 🇮🇳 | जानें उनकी जीत और राजनीति की कहानी

नई दिल्ली, 12 सितंबर 2025 – भारत के संविधानिक इतिहास में एक और अहम पड़ाव आ गया है। चंद्रपुरम पोनुसामी (CP) राधाकृष्णन आज भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। इस घटना से सिर्फ एक व्यक्ति का राजनीतिक पद नहीं बदला, बल्कि राजनीतिक समीकरण, संसदीय स्थिरता और विपक्ष की रणनीति पर भी नए सवाल खड़े हो चुके हैं।

नीचे जानिए इस समाचार की पूरी कहानी – चुनाव प्रक्रिया से लेकर पिछले अनुभवों, रणनीति, मतों की गणना, विवादों तक।

चुनाव कब और क्यों हुआ?

उपराष्ट्रपति का पद हमेशा से ही संवैधानिक महत्व रखता है। लेकिन इस बार ये चुनाव सामान्य समय पर नहीं हुआ – क्योंकि पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखर ने जुलाई 2025 में स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से समय पूर्व इस्तीफा दे दिया।मतों की गिनती: बढ़त, वोटे, और अप्रत्याशित पल

मतदान का प्रतिशत शानदार रहा। कुल निर्वाचन सदस्यों में से लगभग 98.2% ने वोट डाला, जिसमें 767 में से 781 सदस्यों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

समय-मान्य मतों की संख्या थी 752। कुछ मत अमान्य रहे।

मतगणना के बाद परिणाम यह रहा:

  • CP राधाकृष्णन को मिले 452 मत
  • B. Sudershan Reddy को मिले 300 मत
  • इसलिए राधाकृष्णन ने 152 मतों की बढ़त से जीत हासिल की।

यह बढ़त न सिर्फ NDA की पारंपरिक मजबूती को दिखाती है, बल्कि कुछ अप्रत्याशित cross-voting की संभावना को भी जन्म देती है—विपक्ष के कुछ सदस्यों ने उम्मीद से अलग रवैया अपनाया।

धनखर के इस्तीफे के बाद, चुनाव आयोग ने 9 सितंबर 2025 को उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली।

उम्मीदवार: कौन किसका चेहरा था?

  • एनडीए (NDA) ने अपने उम्मीदवार के रूप में CP राधाकृष्णन को खड़ा किया।
  • विपक्षी गठबंधन INDIA ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश B. Sudershan Reddy को नामित किया।

यह मुकाबला सिर्फ राजनीतिक शक्ति की टक्कर नहीं थी, बल्कि विचारों, राज्य-क्षेत्रीय समर्थन, एवं संसदीय सहयोग की भी परीक्षा थी।

CN राधिकृष्णन कौन हैं? राजनीतिक-व्यक्तित्व की झलक

यहाँ CP राधाकृष्णन की पृष्ठभूमि, व्यक्तित्व और अनुभव पर एक नजर:

  • जन्म: 4 मई 1957, तिरुपुर, तमिलनाडु
  • शिक्षा: BBA (बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) की डिग्री
  • शुरुआती राजनीतिक जुड़ाव: RSS से युवावस्था से, बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके पूर्ववर्ती संगठन जनता संघ के साथ सक्रिय भूमिका
  • लोकसभा सदस्य (MP) रह चुके हैं कोयम्बटूर से दो बार: 1998 और 1999 में।
  • तमिलनाडु BJP के अध्यक्ष भी रहे।
  • राज्यपाल के पदों पर भी उनकी भूमिका रही: महाराष्ट्र, झारखंड, तेलंगाना एवं पुदुचेरी में।

शपथ ग्रहण समारोह (Oath Ceremony): कब, कहाँ, कौन होंगे मौजूद?

आज, 12 सितंबर 2025 की सुबह, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में CP राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति के पद की शपथ दिलाएंगी। एवं समय लगभग सुबह 10-10:30 बजे निर्धारित है।

समारोह में निम्न प्रमुख हस्तियाँ उपस्थित रहने की संभावना है:

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
  • विविध राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता; विपक्ष के नेता; राज्‍यपाल; मुख्यमंत्री; सांसद; लोक या राज्य स्तर के प्रतिनिधि
  • पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखर भी आमंत्रित हैं।

उपराष्ट्रपति पद की संवैधानिक भूमिका

उपराष्ट्रपति सिर्फ एक औपचारिक पद नहीं है। संविधान इस पद को महत्वपूर्ण अधिकारी बनाता है। इसकी कुछ प्रमुख जिम्मेदारियाँ:

  1. राज्यसभा अध्यक्ष – उपराष्ट्रपति संसद की ऊपरी सदन, यानी राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं।
  2. अस्थायी राष्ट्रपति – यदि राष्ट्रपति पद अस्थायी रूप से खाली हो जाए, तो उपराष्ट्रपति अस्थायी राष्ट्रपति का कामकाज संभालते हैं।
  3. संविधान की सुरक्षा – उपराष्ट्रपति को संविधान की गरिमा बनाए रखने एवं संसद की कार्यशैली को न्यायसंगत और पारदर्शी बनाने का दायित्व होता है।
  4. पार्लियामेंटरी कार्यों में भागीदारी – उनका कर्तव्य है कि वे संसद के सत्रों में उपस्थित हों, सदस्यों के संवाद एवं बहस को प्रोत्साहन दें।

राजनीति का मतलब: NDA और विपक्ष की रणनीति

इस चुनाव में NDA को पार्लियामेंट में पर्याप्त संख्या का भरोसा था, लेकिन चुनाव के नतीजों में कुछ ऐसे पल आये जो राजनीतिक विश्लेषकों की नजरों में खास हैं:

  • वोटों की बढ़त — 452 मतों के साथ NDA ने अपेक्षित से अधिक सुगठित प्रदर्शन किया।
  • cross-voting की चर्चा — विपक्ष के कुछ सदस्यों ने आरोप लगाया कि उम्मीदवारों ने अपने मतों का इस्तेमाल पार्टी रेखा से हटकर किया। इससे विपक्ष की एकता पर सवाल खड़े हुए।
  • मतों में अमान्य वोटों की भूमिका — 15 मत अमान्य पाये गए, जो कुल प्रक्रिया में मामूली लेकिन ध्यान देने योग्‍य पैमाना है।

प्रतिक्रिया और स्वागत

उपराष्ट्रपति के चुनाव और जीत पर राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ भी तेज़ हुईं:

  • प्रधानमंत्री मोदी ने राधाकृष्णन को बधाई दी है और इस उम्मीद को व्यक्त किया है कि वे संवैधानिक मूल्यों को और मज़बूत करेंगे तथा संसदीय बहसों को उच्च स्तर पर ले जाएंगे।
  • विभिन्न राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों ने भी इस फैसले को लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सफलता बताया।
  • पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखर ने भी नए उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन को बधाई दी, और कहा कि इस पद को वे और सम्मान बढ़ाते देखेंगे।

हर नए पदाधिकारी के सम्मान के साथ कुछ चुनौतियाँ भी आती हैं, और जनता व राजनीतिक विश्लेषक दोनों की नजर राधाकृष्णन से कुछ खास उम्मीदों पर है:

  • राजनीतिक निष्पक्षता और संविधान की सुरक्षा: उपराष्ट्रपति के रूप में उन्हें रोज़मर्रा की राजनीति से ऊपर उठकर काम करना होगा।
  • संसदीय बहसों का स्तर: राज्यसभा और संसद की कार्यवाही में उन्हें विपक्ष व सरकार दोनों के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।
  • स्थानीय मुद्दों से राष्ट्रीय दृष्टिकोण तक: तमिलनाडु से आने वाले प्रतिनिधि के रूप में, उनकी जड़ें स्थानीय हैं, पर भूमिका राष्ट्रीय और सर्वांगीण होगी।
  • विपक्षी दलों की अपेक्षाएँ: कि राधाकृष्णन विपक्ष के सुझावों को संवैधानिक सीमाओं में ससम्मान सुनेंगे, और गैर-पक्षपाती भूमिका निभायेंगे।

क्यों है यह चुनाव महत्वपूर्ण?

यह चुनाव सिर्फ एक व्यक्ति का चुनाव नहीं है, बल्कि राजनीतिक ध्रुवीकरण, संसदीय प्रक्रिया, संवैधानिक नैतिकता और लोकतंत्र की चलती धारा का माप है। कुछ कारण:

  1. संवैधानिक स्थिरता – अचानक इस्तीफे के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया ने चुस्त-दुरुस्त तरीके से जगह ली।
  2. राजनीतिक समर्थन का पैमाना – NDA को अधिकांश समर्थन मिला, लेकिन विपक्ष ने भी चुनौतियां पेश कीं।
  3. लोकप्रियता से बढ़कर पहचान – राधाकृष्णन की पृष्ठभूमि से यह दिखता है कि सिर्फ राजनीतिक नाम नहीं, अनुभव और उम्र-भर की सक्रियता भी मायने रखती है।
  4. भविष्य की दिशा – उपराष्ट्रपति बनने के बाद उनका पद सिर्फ औपचारिक नहीं रहेगा; वह संसद की कार्यशैली, राजनीति की पारदर्शिता और संवाद के तरीके को प्रभावित कर सकता है।

आज, जब CP राधाकृष्णन राष्ट्रपति भवन में शपथ लेंगे, वो सिर्फ एक नया नाम नहीं स्वीकार कर रहा है—वे एक उम्मीद और जिम्मेदारी का झंडा उठा रहे हैं। यह देखना बाकी है कि उनका tenure जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरता है—संवैधानिक मर्यादा, राजनीतिक संवेदनशीलता और लोकतंत्र की पवित्रता को देखते हुए।

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